Shyamacharan Kriyayoga or Advaitavad (श्यामाचरण क्रियायोग व अद्वैतवाद)
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भाषाओं में इनके ग्रन्थ अनुवादित व प्रकाशित हो चुके हैं। लोग सटीक क्रियायोग का संधान पा सके इस उद्देश्य में इन्होंने स्थापना को है ८० चौबीस परगना के काकद्वीप में श्योगिराज श्यामाचरण सनातन मिशन की। परवर्ती काल में फ्राँस के लेमों शहर के उपकण्ठ में इसकी एक शाखा खोली गयी जिसके में चपजपतनस वपतमबजवत है। अगणित आर्त एवं पीड़ित जन को सुचिकित्सा एवं उनमें अन्न व वस्त्र वितरण में ये सदा ही नियोजित रहते हैं।
फ्राँस के थैल सेंट ह्यूगन शहर में महात्मा दलाई लामा की परिचालना एवं रुन्छौक नहन्द के सीधे तत्वावधान में विगत सन् १९९७ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में एकमात आमंवित भारतीय प्रतिनिधि के रूप में योगदान कर इन्होंनें भारत के सनातन योगधर्म को उदात्त श्कण्ठ से विश्ववासियों के समक्ष प्रतिस्थापित किया। इनके असाधारण पाण्डित्य एवं वाग्मिता से मुग्ध हो सम्मेलन में योगदानकारी भिन्न भिन्न धर्मा के प्रतिनिधियों वैज्ञानिकों, दार्शनिकों एवं समुपस्थित समस्त दर्शकों व श्रोताओं ने इन्हें पैम बतजोल क्पहदपधिमक हम, ममत, टपेपवदतल के रूप में विभूषित किया था।
इत्स महाज्ञानी की जागतिक मानव सेवा, अध्यात्म सेवा एवं साहित्य सेवा से मुग्ध हो तिरूपत्ति राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने हाल ही में इन्हें श्वाचस्पतिर (क स्पजज) उपाधि से विभूषित किया है।
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