पुराण पुरुष योगीराज श्रीश्यामाचरण लाहिड़ी (Purana Purusha Yogiraj Srishyamacharan Lahiri)
पुराण पुरुष योगीराज श्रीश्यामाचरण लाहिड़ी (Purana Purusha Yogiraj Srishyamacharan Lahiri) - Paperback is backordered and will ship as soon as it is back in stock.
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1) कर्म ही सत्य है, बाकी सब मिथ्या है, कर्म का अधययन ही वेद है, कर्म ही यज्ञ है, यह यज्ञ सभी को करना चाहिए।
2) मैं सदैव आप सभी के एकान्त में स्थित रहता हूँ।
3) यदि आप सभी सच्चे विश्वास के साथ मेरे प्रति समर्पण कर दें और मेरी शरण ले लें, तो मैं आपके बीच मौजूद रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकता, चाहे मैं कितनी भी दूर क्यों न रहूं। मैं लगातार उन लोगों के आसपास रहता हूं जो ऐसा करते हैं।
4) कोई भी पापी नहीं है। कोई संत नहीं है। कूटस्थ में मन रखने में कोई पाप नहीं है, कूटस्थ में मन न रखने में पाप है।
5) कोई क्षुद्र (मलेच्छ) नहीं है, मन तो मलेच्छ है।
6) जो लोग गुरुउपदेश के अनुसार इस शरीर के दोष नहीं देखते वे अंधे हैं।
7) कर्म करने और कर्म की स्थिति में रहने से बढ़कर कुछ नहीं है।
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