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पुराण पुरुष योगीराज श्रीश्यामाचरण लाहिड़ी (Purana Purusha Yogiraj Srishyamacharan Lahiri)

Binding
ISBN: 9789359715827, 9359715824
Regular price ₹ 400.00

1) कर्म ही सत्य है, बाकी सब मिथ्या है, कर्म का अधययन ही वेद है, कर्म ही यज्ञ है, यह यज्ञ सभी को करना चाहिए।

2) मैं सदैव आप सभी के एकान्त में स्थित रहता हूँ।

3) यदि आप सभी सच्चे विश्वास के साथ मेरे प्रति समर्पण कर दें और मेरी शरण ले लें, तो मैं आपके बीच मौजूद रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकता, चाहे मैं कितनी भी दूर क्यों न रहूं। मैं लगातार उन लोगों के आसपास रहता हूं जो ऐसा करते हैं।

4) कोई भी पापी नहीं है। कोई संत नहीं है। कूटस्थ में मन रखने में कोई पाप नहीं है, कूटस्थ में मन न रखने में पाप है।

5) कोई क्षुद्र (मलेच्छ) नहीं है, मन तो मलेच्छ है।

6) जो लोग गुरुउपदेश के अनुसार इस शरीर के दोष नहीं देखते वे अंधे हैं।

7) कर्म करने और कर्म की स्थिति में रहने से बढ़कर कुछ नहीं है।

लेखक के बारे में:
ग्रन्थकार योगाचार्य श्री अशोक कुमार चट्टोपाध्याय अध्यात्म जगत में एक विश्ववरेण्य व्यक्तित्व है। ये वतसक ज्ञतपलरवहं- डेंजमत है। समग्र भारतवर्ष में धर्म निर्विशेष रूप से हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, बौद्धों, जैनों एवं बाग्ला, हिन्दी, उड़िया, असमिया, तेलगू, मराठी. गुजराती, मलयालाम भाषाभाषियों में इनके शिश्य अनुगामी भरे पड़े हैं। भारतवर्ष के बाहर भी यथा अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्राँस, स्पेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया द० कोरिया, बांग्लादेश सह अन्य अनेक देशों में इनके बहुत से भक्त शिष्य हैं। भारतीय सनातन धर्म के ध्रुवतारा योगिराज श्रीश्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की योगसाधना, जो शक्रियायोगश के नाम से सुपरिचित है, के प्रचार व प्रसार के उद्देश्य से समग्र भारत सह पृथ्वी के विभिन्न देशों का अक्लान्त भाव से इन्होनें भ्रमण किया है। इनके जीवन का एक ही उद्देश्य है और वह है योगिराज के आदर्श, उनकी योगसाधना एवं उनके उपदिष्ट ज्ञान भण्डार को पृथ्वीवासियों के समक्ष प्रस्तुत कर देना ताकि वे सत्यलोक एवं सत्य पथ का संन्धान पा सकें। इसी उद्देश्य से अपने असाधारण पाण्डित्य के बल इन्होंने रचना की है बांग्ला भाषा में विभिन्न ग्रन्थों की यथा श्पुराण पुरुष योगिराज श्रीश्यामाचरण लाहिड़ीश, श्प्राणामयम् जगतश्, श्श्यामाचरण क्रियायोग व अद्वैतवादश, श्योग प्रबन्धे भारतात्माश्, श्सत्यलोके सत्यचरणश् श्के एइ श्यामाचरणश् एवं सम्पादन किया है पाँच खण्डों में प्रकाशित श्योगिराज श्यामाचरण ग्रन्थावली का। भारत के विभिन्न भाषाओं यथा हिन्दी, उड़िया, तेलगू, मराठी, गुजराती, तमिल सह अंग्रेजी एवं फ्राँसीसी

 

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