प्राकृत व्याकरण: प्रथम पाद (Prakrit Vyakarana: Pratham Paad)
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अनुपम आन्तरिक सौन्दर्य के निर्धारवत् पूज्य गुरुदेव मुनि रूप में महावीर, मर्यादा रूप में राम और अनासक्त योग में श्रीकृष्णवत् हैं। आप का सादा जीवन, ज्ञान पिपासा, कर्मठवृत्ति श्रमनिष्ठा का साक्षात् प्रतीक है।
आपकी वक्तृत्व-कला अत्यन्त रोचक, प्रभावोत्पादक तथा आकर्षक है। आपकी लेखनशैली में प्राञ्जलता के साथ गम्भीरता और सरलता का संगम रूप प्रयाग तीर्थ नजर आता है। पाठकगण इस तथ्य का दर्शन आपकी पुस्तकों, जैसे-अन्तकृदृशांग सूत्र का भाषा-वैज्ञानिक विश्लेषण, गंतव्य की ओर, जिनधम्म प्रश्न प्रदीपिका, मुस्कुराते स्वर, प्रार्थना और साधना आदि में बखूबी कर सकते हैं।
आप सतत सर्जनशील, रचनाकार, कवि एवं साहित्यकार होने के साथ-साथ ज्योतिष विद्या की अनेक शाखाओं में पैठ रखने वाले सफल विश्लेषक हैं। ज्योतिष विद्या के प्रति आपकी रुचि का ही परिणाम है कि आपने अपने आश्रम का नाम ही "ज्योतिष गुरुकुल" रखा है। जहाँ पर आप ज्योतिष विद्या का प्रशिक्षण भी देते हैं। जन्म कुण्डली का लेखन एवं विश्लेषण करते हैं।
प्रस्तुत ग्रंथ में प्राकृत व्याकरण के प्रथम पाद का सरलतम विवेचन है। यथास्थान शोधपूर्ण टिप्पणी तथा सन्दर्भ का स्पष्ट उल्लेख होने से ग्रंथ पूर्णतः शोधपूर्ण हो गया है। इस ग्रंथ की खास बात यह भी है कि शब्द-सिद्धि में प्रयोग किए गए संस्कृत व्याकरण के सूत्रों का उल्लेख वृत्ति सहित किया गया है। और शब्द में होने वाले छोटे-से-छोटे परिवर्तन को भी सूत्र सहित स्पष्ट किया गया है। व्याकरण जैसे विषय को इससे सरल बना पाना असम्भव नहीं तो दुरुह अवश्य है। अतः यह साधिकार कहा जा सकता है कि प्राकृत व्याकरण, भाषा तथा साहित्य के जिज्ञासु के लिए यह सर्वाधिक सरल, सटीक, सहयोगी और संग्रहणीय ग्रंथ होगा।
लेखक के बारे में:
आचार्य डा० पद्मराज स्वामी जी,
माता : श्रीमती तारा देवी उपाध्याय
पिता : स्व. श्री कृष्ण उपाध्याय
जन्म : 18 फरवरी 1976
जन्म स्थान : लामपाटा भेडावारी, वार्ड नं. 7. जि. पर्वत, धवलागिरी, (नेपाल)
दीक्षा : 7 मई 1995
दीक्षा स्थल : गुरु गणेश धाम, जालना, महाराष्ट्र (भारत)
अध्ययन : एम. ए., पी. एच. डी.
भाषा ज्ञान : नेपाली, हिन्दी, प्राकृत इत्यादि।
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