About the Book:
इस पृथ्वी पर पारद ही एक ऐसी दिव्य धातु है, जिसकी सिद्धि से मनुष्य कालमुक्त होकर आकाश मार्ग से भी चल सकता है तथा इस संसार का जो वैभव स्वर्ण है उसको भी बना सकता है जिसका प्रमाण प्राचीन ऋषि-मुनियो द्वारा उल्लेखित रस शास्त्रों में मिलता है! उसी का समुचित ज्ञानआगे लाने के लिये पुस्तक की विषय वस्तु का स्वरूप वैदिक ज्ञान के अन्तर्गत मानव कल्याणकारी रूपों में सहज देखा जा सकता है! जिसकी सिद्धि का साधान रस शास्त्रों के आधार पर ही विधिवत जानकारी के साथ पारद के उन स्वरूपों की सिद्धि में बताया है जिनका साधन होने पर मनुष्य अपने सभी दुखों व दरिद्रता से छूटकर काल मुक्त हुआ सुखी जीवन जी सकता है! जिसे आयुर्वेद की सवोंत्तम रस चिकित्सा की सिद्धि के उपयोगी स्वरूपों में भी सहज देखा जा सकता है जो देहोपयोगी सार्थक रस ज्ञान की सिद्धि के लिये रोगमुक्त दीर्घ जीवन देने वाली हेमादि धातुजीर्णरसभस्म की सिद्धि के उपायों में उपयोगी रसों के निर्माण का विधि निरूपण प्रस्तुत करता है!
About the Author:
वैद्य सुभाजचन्द्र "जन्म 05 फ़रवरी 1953" 1986 से पारद के शोध कार्य में स्वतंत्र रूप से संलग्न हैं। जिसमे प्राचीन मनीषियों की अवधारणा से अवधारित होकर रस शास्त्रों के आधार पर लेखन कार्य करते हुए उसकी सिद्धि के उपाय को भी अपने निजि स्तर के शोध कार्य में देखा है जिसमें पुस्तक का अधिमान सिद्ध करने वाला सिद्धयोग रससिद्धि व ताम्रधातु के महीमय स्वरूप की संरचना का आविष्कार आयुर्वेद के रस विज्ञान की सर्वोत्तम रस उपलब्धि का दावा रखता है, जिसका उपयोगी गुण मानव कल्याण के लिये अपना वैज्ञानिक आधार भी रखता है! जिस पर चर्चा के लिये यदि आयुष के विद्वान आगे आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है!