दकà¥à¤· पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ ने अपने जमाता देवाधिदेव शिव के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अनादर का à¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ करने हेतॠà¤à¤• यजà¥à¤ž में अनà¥à¤¯ देवताओं को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया, किनà¥à¤¤à¥ शिव को नहीं। शिव केमना करने पर à¤à¥€ उनकी अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी माता सती उस यजà¥à¤ž में गईं। परंतॠशिव का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ न देख उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इतना अपमानित अनà¥à¤à¤µ किया कि सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की ही आहà¥à¤¤à¤¿ दे डाली।उस समय वो गरà¥à¤à¤µà¤¤à¥€ थीं। उनका शरीर खंडित होकर पृथà¥à¤µà¥€ पर गिरा — सà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ ान कामाखà¥à¤¯à¤¾ में और गरà¥à¤ में पल रहा à¤à¥à¤°à¥‚ण काशी में। शिव के आदेश की अवहेलना करने पर आदि शकà¥à¤¤à¤¿ माता सती को à¤à¥€ चार यà¥à¤—ों तक सेकणà¥à¤¡ खंड (कृपया अंत का à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ आवरण देखें) के बंधन में रहना पड़ा। शिव नेकहा था कि उनका पà¥à¤¤à¥à¤° ही अघोर बनकर माठको मà¥à¤•à¥à¤¤ करा सकेगा और कलियà¥à¤— के इस वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ कालखंड में आखिर, काशी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में शिवपà¥à¤¤à¥à¤° का जनà¥à¤® हà¥à¤†, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बाबा के मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में अपनी साधना दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ माठको मà¥à¤•à¥à¤¤ कराया। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में हो रहे परिवरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ में कà¥à¤¯à¤¾ माठकी पगधà¥à¤µà¤¨à¤¿ नहीं सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती ? परमपिता शिव, आदि शकà¥à¤¤à¤¿ माठसती और उनके पà¥à¤¤à¥à¤° शिवपà¥à¤¤à¥à¤° से बना तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£, जो यà¥à¤—ों से सà¥à¤ªà¥à¤¤ पड़ा था, अब जागà¥à¤°à¤¤ हो उठा है। इसी जागà¥à¤°à¤¤ तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£ में सनà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¤¿à¤¤ हैंसमसà¥à¤¤ वो शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ जो अनिवारà¥à¤¯ हैं जगत और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के संचालन और नियंतà¥à¤°à¤£ के लिà¤à¥¤ और, इस कारà¥à¤¯ का उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ शिवपà¥à¤¤à¥à¤° पर सौंपकर बाबा और माठने इतिहास में पहली बार किसी मानव शरीरधारी को 'अघोर' में रूपांतरित कर दिया।