प्रस्तुत ग्रंथ में बौद्धदर्शन का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक दृष्टि से विस्तृत विवेचन किया गया है। यह छः प्रकरणों में विभक्त है। प्रथम प्रकरण में भारतीय दर्शन की सामान्य प्रवृतियों पर विचार किया गया है। द्वितीय प्रकरण में भारतीय दर्शन का ऐतिहासिक विकास दिखाया गया है। तृतीय प्रकरण में भारतीय दर्शन का 'आस्तिक' एवं 'नास्तिक' इन दो वर्गों में विभाजन अनुचित बताया गया है तथा विशेषतः यह कहा गया है कि बौद्ध को किसी भी तरह 'नास्तिक' नहीं ठहराया जा सकता। चतुर्थ प्रकरण में बौद्धदर्शन का विवरण है। इसमें पूर्वार्ध का विषय स्थविरवाद है और उत्तरार्ध का विषय बौद्धदर्शन का उत्तरकालीन विकास है। पांचवे प्रकरण में वैदिक दर्शन से लेकर आधुनिक भारतीय विचारधारा तक विभिन्न दर्शन तंत्रों का बौद्धदर्शन के साथ, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, तुलनात्मक विवेचन किया गया है। छठे प्रकरण में समग्र भारतीय दर्शन साधना में बौद्धदर्शन के स्थान एवं महत्त्व को दिखाया गया है।
सुविधा के लिए इस बृहदाकार ग्रंथ को दो भागों में प्रकाशित किया गया है। प्रथम भाग में पहले चार प्रकरण एवं द्वितीय में अंतिम दो समाविष्ट हैं।