MOTILAL BANARSIDASS PUBLISHING HOUSE (MLBD) SINCE 1903

SKU: 9789357600668 (ISBN-13)  |  Barcode: 9357600663 (ISBN-10)

भक्ति - ज्ञान दर्शन (भाग-1)

Binding
₹ 350.00

Pages : 318

Edition : 1st

Size : 5.5" x 8.5"

Condition : New

Language : Hindi

Weight : 0.0-0.5 kg

Publication Year: 2025

Country of Origin : India

Territorial Rights : Worldwide

Reading Age : 13 years and up

HSN Code : 49011010 (Printed Books)

Publisher : Motilal Banarsidass Publishing House

Categories: MLBD New Releases
Tags: Philosophy

इस पुस्तक की सार-गर्भित विशेषताएँ

हमारे धर्म-ग्रंथों में भगवान वेद-व्यास द्वारा रचित श्लोकादि में ऐसे दार्शनिक एवं रहस्यात्मक शब्दों का समावेश किया गया है, जिससे हम लोग भ्रमित हो जाते हैं।

जहाँ शब्द लिखा है विष्णु और उसका अर्थ होगा श्रीकृष्ण। उसी का समाधान इस पुस्तक में समझाने का पूरा प्रयत्न किया गया है। हमारे पढ़े-लिखे समाज में भी ऐसी-ऐसी भ्रांतियाँ भरी पड़ी हैं, जिन्हें सुलझाने में हम लोग और उलझ जाते हैं। उन्हीं रहस्यों को दार्शनिक सिद्धान्तों से ओत-प्रोत वेद-पुराण-शास्त्रादिकों के द्वारा प्रमाणित करते हुए विधिवत सरल भाषा में समझाया गया है।

अक्सर हमारे सनातन धर्मावलम्बियों में मालुम नहीं कहाँ से यह प्रथा प्रचलित हो गयी है कि- विष्णु के अवतार राम है, और विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण हैं, परन्तु शास्त्रों के अनुसार राम और कृष्ण दोनों एक हैं। उन्हीं श्रीराम अथवा श्रीकृष्ण से केवल विष्णु ही नहीं बल्कि अनंत ब्रह्माण्डों के अनंत ब्रह्मा-विष्णु-शंकर उत्पन्न होते हैं। इस पुस्तक में ढेर सारे शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा समझाया गया है।

बचपन से लेकर आज तक हम लोग यही जान रहे थे कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में वसुदेव-देवकी के यहाँ हुआ था, परन्तु उसी समय नन्द-यशोदा के यहाँ भी उनके पुत्र के रूप में योगमाया के साथ भगवान श्रीकृष्ण का गुप्त रूप से जन्म हुआ था। इसका रहस्य पौराणिक सिद्धान्तों द्वारा इस पुस्तक में बताया गया है।

लेखक के बारे में:                                         

भक्ति-ज्ञान से संबंधित षडचक्र, ज्ञान मार्ग का वर्णन, योग-मार्ग की साधना तथा सबसे सरल-पंथ भक्ति-भाव की विशेषता और उनकी विशेषताओं को आसान भाषा में दर्शाया गया है। यदि आप एक बार भी इसे पढ़ लेंगे, तो अवश्य ही आपकी आध्यात्मिक उन्नति होना निश्चित है।

मैं कोई लेखक नहीं हूँ और न ही कोई विचारक अथवा दार्शनिक हूँ। मैं तो घोर माया-वध्द और अज्ञानी हूँ। अपने अज्ञानता को दूर करने की दृष्टि से संत महापुरुषों द्वारा कृपा-प्रसाद पाकर उन्हीं की प्रेरणा से अपनी जानकारी हेतु उस दुर्लभ तत्त्व-ज्ञान को संगृहीत करने लगा। वहीं ज्ञान सबको हो जाय, जो मेरे जैसे अज्ञानी हैं, इसी उद्देश्य से यह पुस्तक आप लोगों को हस्त गत हो सका है।

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