सर्जक कौन कालिदास या विद्योत्तमा विद्या की राजनगरी काशी का पाण्डित्य (Sarjak Kaun Kalidas ya Vidyottama Vidya ki Rajnagari Kashi ka Paanditya)
सर्जक कौन कालिदास या विद्योत्तमा विद्या की राजनगरी काशी का पाण्डित्य (Sarjak Kaun Kalidas ya Vidyottama Vidya ki Rajnagari Kashi ka Paanditya) - Paperback is backordered and will ship as soon as it is back in stock.
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बनारस की राजकुमारी विद्योतमा को 'विदुषी' माना गया है। परंपरा से राजसी परिवारों की ज्ञान के प्रति पिपासा, जिज्ञासा और विद्वता का सम्मान, उनकी शोभा और जीवन-आदर्श रहा है। राजकीय वैभव, कुलीनता, सौम्यता, ब्रह्माण्डीय विविध ज्ञान-वेद, उपनिषद्, काम-शास्त्र व लोक-शास्त्र से कालिदास नामावली सातों रचनाऐं पूरी तरह संवलित है। राजसी वैभव के अनुरूप रत्नों का व्यवहार, वैभव, आचार, विचार और व्यवहार, महलों की अट्टालिकाऐं तथा अंतःपुर का वैभव, पाठकों को सौम्य वैभवपूर्ण संसार से परिचित करातां है जो स्वयं मे अद्भुत है। आसक्ति-विरक्ति के मध्य अत्यंत सूक्ष्म रेखा है। रचयिता में द्रष्टाभाव प्रधान रहता है जो द्रष्टा है वही स्रष्टा है।
इस साहित्य का परिपाक यह स्पष्टतः संकेत करता है कि इन कालजयी ग्रंथों की रचयिता राजसी परिवेश से संवलित कोई विदुषी स्त्री ही हो सकती है। यदि हम कालिदास और काशी की राजकुमारी विदुषी विद्योत्तमा के विवाह संबंधी शास्त्रार्थपरक लोक कथा- किंवदंती को ध्यान में लाएँ, और वहीं दूसरी ओर इन सातों ग्रंथों के विशाल साहित्य के अंतःसाक्ष्यों का आद्योपान्त सूक्ष्म अन्वेषण- विश्लेषण कर चिंतन करें, तब स्वतः इनका प्रमाण मिल जाएगा कि विदुषी विद्योत्तमा ही महाकवि कालिदास की सातों कृतियों की रचयिता रही हों। उन्होंने अपने पति के नाम पर साहित्य लेखन कर, स्वयं को विलुप्त करके भी अपनी सृजनात्मकता को निरन्तर अभिव्यक्त करती रहीं। स्वी-जीवन की साधनावस्था है जबकि उत्तरकाल इसकी सिद्धावस्था
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